अस्थमा फेफड़ों की एक बीमारी है जिसके कारण सांस लेने में कठिनाई होती है। अस्थमा होने पर श्वास नलियों में सूजन आ जाती है जिस कारण श्वसन मार्ग सिकुड़ जाता है। श्वसन नली में सिकुड़न के चलते रोगी को सांस लेने में परेशानी, सांस लेते समय आवाज आना, सीने में जकड़न, खांसी आदि समस्याएं होने लगती हैं। लक्षणों के आधार अस्थमा के दो प्रकार होते हैं- बाहरी और आंतरिक अस्थमा। बाहरी अस्थमा बाहरी एलर्जन के प्रति एक प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया है, जो कि पराग, जानवरों, धूल जैसे बाहरी एलर्जिक चीजों के कारण होता है। आंतरिक अस्थमा कुछ रासायनिक तत्वों के श्वसन द्वारा शरीर में प्रवेश होने से होता है जैसे कि सिगरेट का धुआं, पेंट वेपर्स आदि।
अस्थमा के लिए जेनेटिक कारणों के साथ ही प्रदूषण और एलर्जी काफी हद तक जिम्मेदार है। सही समय पर सही इलाज शुरू करके इसे काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है। महिलाओं की तुलना में पुरुषों में अस्थमा का खतरा ज्यादा है। महिलाओं में पाए जाने वाला विशेष हार्मोन स्ट्रोजन उन्हें इससे बचाता है। इसकी एक प्रमुख कारण वजन, महिलाओं की तुलना में पुरुषों का आउटडोर मूवमेंट ज्यादा होना है। इसलिए पुरुषों को अपने फेफड़े की सुरक्षा के लिए विशेष रूप से सतर्क रहना चाहिए। वायु प्रदूषण का बढ़ता स्तर, धुम्रपान, बचपन में सही इलाज न मिलना, एग्जिमा, एलर्जी, कॉमन फ्लू और वायरल इन्फेक्शन के कारण अस्थमा हो सकता है।
डायग्नोसिस
अधिकतर लक्षणों के आधार पर मर्ज का निदान (डायग्नोसिस) किया जाता है। इसके अलावा कुछ परीक्षण करके जैसे सीने में आला लगाकर, म्यूजिकल साउंड (रान्काई) सुनकर और फेफड़े की कार्यक्षमता की जांच (पी.ई.एफ.आर. और स्पाइरोमेट्री) द्वारा की जाती है। अन्य जांचों में खून की जांच, सीने और पैरानेजल साइनस का एक्सरे कराया जाता है।
इलाज के बारे में
अस्थमा का इलाज डॉक्टर की सलाह से इनहेलर चिकित्सा लेना है। इलाज की अन्य विधियों जैसे – ओमेलीजुमेब या एन्टी आईजीई थेरेपी और ब्रॉन्कियल थर्मोप्लास्टी आदि की जरूरत पड़ने पर मदद ली जाती है।
क्या करें
अस्थमा की दवा हमेशा अपने पास रखें।
धूमपान से बचें।
जिन कारणों से अस्थमा का प्रकोप बढ़ता है, उनसे बचें।
फेफड़े को मजबूत बनाने के लिए सांस से संबंधित व्यायाम करें।
प्राणायाम करना अत्यंत लाभप्रद है।
ठंड से बचें।
यदि बलगम गाढ़ा हो गया है, खांसी, घरघराहट और सांस लेने में तकलीफ बढ़ जाए या रिलीवर इनहेलर की जरूरत बढ़ गई हो, तो शीघ्र अपने डॉक्टर से परामर्श लें।
क्या न करें
एलर्जन के संपर्क में न आएं।
घर में जानवरों को न पालें।
धूल को घर में जमने न दें।
कोल्डड्रिंक्स, आइसक्रीम, फास्ट फूड्स, अंडा व मांसाहारी भोजन से परहेज करें।
ये हैं कारण
आनुवंशिक कारण।
धूल (घर या बाहर की) या पेपर की डस्ट।
रसोई का धुआं।
नमी और सीलन।
मौसम परिवर्तन।
सर्दी-जुकाम।
धूमपान।
फास्टफूड्स।
मानसिक चिंता।
पालतू जानवर।
फूलों के परागकण।
लक्षणों को समझें
खांसी जो रात में ज्यादा बढ़ जाती है।
सांस लेने में कठिनाई, जो दौरों के रूप में तकलीफ देती हो।
सीने में कसाव या जकड़न महसूस करना।
सीने से घरघटाहट जैसी आवाज आना।
गले से सीटी जैसी आवाज आना।
इलाज के बारे में
अस्थमा का इलाज डॉक्टर की सलाह से इनहेलर चिकित्सा लेना है। इलाज की अन्य विधियों जैसे – ओमेलीजुमेब या एन्टी आईजीई थेरेपी और ब्रॉन्कियल थर्मोप्लास्टी आदि की जरूरत पड़ने पर मदद ली जाती है।
क्या करें
अस्थमा की दवा हमेशा अपने पास रखें।
धूमपान से बचें।
जिन कारणों से अस्थमा का प्रकोप बढ़ता है, उनसे बचें।
फेफड़े को मजबूत बनाने के लिए सांस से संबंधित व्यायाम करें।
प्राणायाम करना अत्यंत लाभप्रद है।
ठंड से बचें।
यदि बलगम गाढ़ा हो गया है, खांसी, घरघराहट और सांस लेने में तकलीफ बढ़ जाए या रिलीवर इनहेलर की जरूरत बढ़ गई हो, तो शीघ्र अपने डॉक्टर से परामर्श लें।
क्या न करें
एलर्जन के संपर्क में न आएं।
घर में जानवरों को न पालें।
धूल को घर में जमने न दें।
कोल्डड्रिंक्स, आइसक्रीम, फास्ट फूड्स, अंडा व मांसाहारी भोजन से परहेज करें।
ये हैं कारण
आनुवंशिक कारण।
धूल (घर या बाहर की) या पेपर की डस्ट।
रसोई का धुआं।
नमी और सीलन।
मौसम परिवर्तन।
सर्दी-जुकाम।
धूमपान।
फास्टफूड्स।
मानसिक चिंता।
पालतू जानवर।
फूलों के परागकण।
लक्षणों को समझें
खांसी जो रात में ज्यादा बढ़ जाती है।
सांस लेने में कठिनाई, जो दौरों के रूप में तकलीफ देती हो।
सीने में कसाव या जकड़न महसूस करना।
सीने से घरघटाहट जैसी आवाज आना।
गले से सीटी जैसी आवाज आना।
रोकथाम
- सर्दियों के मौसम में आमतौर पर लोगों को भूख खुलकर लगती है। इस कारण लोग जमकर खाते हैं और सर्दियों के कारण सुबह सैर करने या व्यायाम करने में आलस्य बरतते हैं। नतीजतन लोगों का वजन बढ़ जाता है। इसलिए शारीरिक व्यायाम और धूप निकलने पर सुबह की सैर करना जारी रखें।
- ऊनी कपड़े पहनकर स्वयं को गर्म रखने से सर्दी, फ्लू या निमोनिया(न्यूमोनिया) जैसी बीमारियों को रोका जा सकता है।
- तापमान बहुत कम होने पर अगर संभव हो तो दिल की बीमारियों से ग्रस्त लोगों और अस्थमा पीड़ितों को घर के अंदर ही रहना चाहिए।
- पर्याप्त मात्रा में पानी पीना और पौष्टिक खाद्य पदार्थ लेना आवश्यक है। खाद्य पदार्थ ऊर्जा का महत्वपूर्ण स्रोत होते हैं, जो शरीर को गर्म रखते हैं।
- अस्वस्थता की स्थिति में शीघ्र ही डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए।
- किसी भी खाद्य पदार्थ के खाने से पहले साबुन से या फिर हेंड सैनिटाइजर से हाथ साफ करें।
इन्फ्लूएंजा का टीका: यह वैक्सीन (टीका) मौसमी इन्फ्लूएंजा और स्वाइन फ्लू (एच1 एन1) वायरस से सुरक्षा प्रदान कर सकती है। इसे प्रतिवर्ष लगवाना पड़ता है।
न्यूमोकोकल वैक्सीन: यह वैक्सीन बच्चों से लेकर वयस्कों को भी लगाई जा सकती है।