ओम: विश्वानिदेव सवितर्दुरितानि परासुव। यदभद्र तन्न आसुव
हे देव सूर्य भगवान तुम हमारे विश्व के पापों को नष्ट करो और जो कल्याणकारी हो उसे प्रदान करो क्योंकि कल्याणकारी क्या होगा इसे मैं नहीं जानता अब तक मैंने बहुत कुछ कल्याणकारी सोचा था प्रभु पर उसमें से कुछ भी तो कल्याणकारी नहीं निकला मैंने सोचा था कि सत्ता कल्याणकारी होगी किंतु मेरे लिए वह भी कल्याणकारी नहीं हुई मैंने सोचा था संपत्ति कल्याणकारी होगी पर वह भी असत्य निकला मैंने सोचा था संततियां कल्याणकारी होगी मैंने उनके लिए प्रार्थना भी की थी मेरी प्रार्थना सुनी भी गई नो नो पुत्र हुए पर मेरे पुत्र ने ही मुझे बंदी गृह में डाला और आज उनकी अंत्येष्टि करने के लिए मैं जीवित हूं
उग्रसेन ने भगवान श्री कृष्ण को सूर्य से की गई उपासना का अर्थ समझाया